मैं आपलोगों से अनजान हूँ ,
मेरे अनजानी का कारण में खुद हु।
आपकी पहचान से मेरी पहचान भिन्न है ,
जो आपके लिए बेइज्जत है मेरे लिए इज्जत है।
मेरी अकेलेपन में मैं खुश हु ,
अकेले में आपका हाथ नही ,
उनका जो आपके द्वारा दिया है।
किन्तु वे मेरी गम्भीरता आत्मा से बिम्बित हैं ,
इसलिए आपको मेरे में सदैव चोट हैं।
विष से आप्रसन्न हूँ ,
क्योकि मुझे और बेहतर चाहिए ।
दुःखो का भण्डार हु मैं ।
मैं आपके दिमाग में बैठा हु ।
मैं आपका सम्पुर्ण कार्य करता हु ,
फिर भी मैं आपलोगों से अनजान हु ।
मेरी सम्मान ही मेरी बच्ची है ,
बच्ची ही मेरी पहचान है ।
मैं इस दुनिया में अनजान हु ,
इसलिए मैं इस दुनिया से बेघर हु ।
गतिशील जीवन में मैं रूकावट हु इसलिए मैं अंजान हु।
गुरुवार, 24 सितंबर 2015
मैं आपलोगों से अनजान हूँ
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