पैसा सब कुछ नही होता है।
पैसा के बल पर कुछ ही चीजे हो पाता हैं।
मानवीय गुण भी कुछ होता है,
मानवीय गुण से बड़ी कोई चीज नही है।
संस्कार के बल पर दुनिया में राज किया जा सकता है,
परन्तु पैसे के बल पर नही।
पैसा सिर्फ अहंकार और नफरत देता है,
पैसा संस्कार के सामने कुछ नही है।
जहाँ संस्कार की किरण नही है वहॉ अंधकार है,
मुर्दा है वह इंसान जिसके पास आपना संस्कार नही हैं।
आज पैसा के बल कुछ सुख ही मिल पाते है,
परन्तु शत्रु बर्बत की ओर पैसा अग्रसर करता है।
कल तक बोलने का ढंग था आज कही बोलने का ढंग खो गया है।
घायल है वह इंसान जिसके पास वयवहरिक ज्ञान नही।
सच्चा संस्कार कभी दोखा नही देता है,
संस्कार कभी खत्म नही होता है
चाहने की शक्ति छिडा हो जाता है।
संस्कार मर के भी उजागर हो जाता है,
इसलिए तो संस्कार के बल पर मानव ठीका है।
पागल है वह जो सिर्फ पैसा पैसा करता है,
ये मत समझना की पैसा बुलन्दी तक पंहुचा देगा।
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