मोर कलम (अमित चन्द्रवंशी"सुपा") ले बनिहार(किसान) के दुःख दर्द आजदी के पहले अऊ अभी के हाल..
बनिहार शब्द ले चीड़ लगथे सबो काम ल बनिहार करते तभो ओला मनखे मन अपन ले बड़े नही कहय। बनिहार के बिन तो बिहान नही होवय तभो बिचारा मन सन बड़े मनखे मन मजाक करथे। बनिहार के दशा ल जेन नही जानय होही ह बनिहार ऊपर हास्थे (बड़े मनखे मन) अपन दुःख ल होही मन जनथे।पानी गिरथे तब बने फसल होथे नही गिरय त दुकाल आथे, बनिहार अऊ किसान के दुःख अबड़ हो जाते अपन दुःख ले निकल के फेरे खेत कोती जाथे अऊ दिन रात मजदुरी करथे तब जाके सुघ्घर फसल मनखे मन ल देथे , तभो मनखे मन बनिहार के इज्जत करे ला भुल जाथे ।
जेन बेरा म अकाल आथे तेन बेरा म कुछु किसान मन खुदखुशी कर लेथे ओखर मुख्य कारन हवय बड़े मनखे मन जेखर ले बनिहार मन उधारी म दवाई लाये रहिथे, सरकार कोती ले कुछु मदद नही मिलय अऊ उखर मन मेर सबो रास्ता बन्द हो जाथे तेखर सेती मरे बर मजबुर हो जाथे।
पहली के मन अकाल अवय त लगान नही भर सकय त मर जवय कबर कि भारतीय किसान मन सन अंग्रेज मन बहुते बुरा सलुख करे हवय , लगान हर साल बड़ावय अऊ बनिहार मन के आधा ले जादा हिस्सा ह अंग्रेज के गोदाम म जावय, किसान के दशा बहुत ख़राब होंगे रहिस अऊ ऊखर जिंदगी पूरा लगान म कट जवत रहिस।
एक बेरा आजदी के पहली भारत म बहुत अकाल पड़े रहिच, तेन बेरा म अंग्रेज मन बनिहार ल बन्धुवा बना के रखय तब अग्रेंज मन बनिहार ल जिन्दा रखे बर अमेरिका ले अनाज मंगवाइच कबर कि बनिहार मन सन बैला भैसा जइसन बहुत काम करवया , अमेरिका म जानवर मन ल जेन अनाज ल खाये बर देवय तेन ल भारत म मनखे मन ल खाये बर देइच अऊ इहा के मन ओ अनाज ल साफ करके खाइच अऊ अनाज म ख़राब रहिस तेन ल जमीन म फेक दिच तेने ह बेसरम(जहरीला पौधा)के बीज रहिस तेने ह पुरा जहर बो दिच। अतका दुःख सहे हे भारतीय किसान मन तभो काम करे ल नही छोड़या ऊखर आसा हवय सभो मनखे मन ख़ुशी ख़ुशी जिय्य।
-अमित चन्द्रवंशी"सुपा"
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