गुरुवार, 8 सितंबर 2016

सोचने पर मजबुर करता हैं

जिंदगी के सच्चाई का पेसकश अमित चन्द्रवंशी"सुपा" भाई के कलम से अवतरित हैं।

(खुद पर गुस्सा आता हैं)
जो न होना था वह हो गया है वक़्त से पहले इतना बड़ा बदलाव दिल में सीना पड़ा बदल तो गए थे लेकिन इन चार दीवारों के बीच दम घुटता हैं उन छोटे छोटे बच्चो को सड़क पर भीख माँगते देख।

(आँख नम हैं उन नादानों को देख)
खुद पर गुरूर करने वाले  आखिर किस बात का गुरुर करते हैं आप अपना समझोतों करने वाले हरदम आप हो फिर हिन्दू मुसलिम क्यों बाटते हो? अपने दिल से पूछो आप हिन्दू हो या मुसलिम दिल से एक आवाज निकलेगा इंसान है आप।

(दिल में बेकरारी सपनों जैसा)
सपनों में उड़ान भरने का सबका दिल चाहता हैं पर पैसे न होने के कारण टैलेंट दब जाता हैं और टैलेंट का ज्ञान नही हो पाता है सपनें सभी के होते हैं और उसे पुरा करने का हिम्मत भी लेकिन आज टैलेंट पैसे पर ठीका हुआ हैं।

चोराहों पर खड़े होते है तो कहते है दूर भाग छूना मत, ये आपका इन्सानियत नही आपका घमण्ड होता हैं घमण्ड चुरचुर तब होता है जब आप कितने भी आमिर हो या फिर डॉक्टर हो तब आपके बच्चे का एक्सीडेंट होता है और उसे बचा नही पाते हैं (चैनाई के प्रसिद्ध सर्जन के साथ घटित हुआ हैं घटना)

(सुनी सुनी हाथ थम ले कोई)
कोई सामने नही आते हैं उन चौराहो के बच्चे के समुख, बेखुदी दिल से बच्चे कार के दरवाजे खटकाते हैं चन्द पैसे के लिए उन्हें पता नही होता है क्या करना हैं? नन्हे नन्हे पैरों में छाले पड़े होते हैं न तो आराम होता है न पेट का भुख बुझता हैं।

कोई मसीहा की तरह आये इस खवाब में बैठे हैं, कोई सायद ही आये इसलिए एक कदम आप आगे बढ़ाये जीवन का इतिहास नया बनाओ। जिस दिन कामयाब होगया उस दिन कुछ करने का जरूर सोचूँगा लेकिन आप तो अभी से कर सकते हैं।
( अभी कुछ नही कर सकता हु इसलिए मायुष  बैठा हूँ।)

-अमित चन्द्रवंशी"सुपा"

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