बुधवार, 23 अगस्त 2017

संस्मरण - वो नन्हे हाथ।

वो नन्हे हाथ..!!

अक्सर देखता हूं खिड़की के बहार तब एक ही चीज दिखाई देता है, वो नन्हे हाथ जो कलम पकड़ते वह कभी झंडा बेच रहा है, कभी किसी ठेले में बर्तन साफ करते नजर आते है; मन मे एक हलचल होता है, खास मेरे पैरों में जान होती और मैं अपने पैरों में खड़ा हो पाता तब कुछ न कुछ उनके लिए करता; आज नही तो कल सही एकदिन जरुरी कुछ करूँगा। दो वक्त का प्यार सभी को चाहिए होता है, प्यार का संचार तभी होगा जब हम अपना खुशी को न देखे दूसरे का मदत करे वास्तव में सच्ची खुशी होती है और जीत का रास्ता दिखाई देता है। एक वक्त की बात है, जब मैं भोरमदेव में शिव मन्दिर दर्शन के लिए गया हुआ था, तब वही एक बच्चे को होटल में काम करते देखा पहले तो मुझे बहुत बुरा लगा फिर मैं होटल मालिक से बोलूंगा सोचा पर मेरा जमीर वहाँ खो गया इस बात को लेकर की अभी पैरो में जान नही उड़ान की सोच रहा हु मैं तो कहता सही पर क्या मैं होटल मालिक की मानसिकता बदल पाता? इसतरह मैं वहाँ से उदास होकर चले गया फिर मुझे मेला में खिलौने लेना था लेकिन उसी वक़्त मैंने निर्णय लिया कि आज के बाद कभी कुछ भी खिलौने नही खरीदूंगा और फ़िजूल खर्चे नही करूँगा जिसे मुझे मायुस होना पड़े और मैं आज  कही जाता हूं तो सड़क किनारे उन गरीब आसाहय लोगो को देखते हु मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है लेकिन मुझे उस वक़्त का तलाश है जिस वक्त मैं एक ऊंचे पायदान में चले जाऊंगा तब कुछ न कुछ जरूर करूँगा जिसे किसी के मन मे शांति ला सकू, ये काम नाम के लिए नही पंरतू मानवता के लिए करूँगा। अक्सर सुना करता हु मेरे दादा जी बहुत अच्छे नेक इंसान थे, हमारे गांव के आसपास गांव वाले दादा जी से परिचित थे और दादा जी ने जो कार्य किये वह बहुत सराहनीय था नामी आदमी थे, उनका कार्य सभी के लिए एक था कभी वो अपने आप को बड़ा आदमी नही समझे और उनसे जो कुछ भी बनता था वह मदद करते थे उनके विचार बहुत सुंदर थे मुझे भी याद आते है वह दिन जब मैं छोटा था तब दादा जी ने कहा था , बेटा पटाखे कम जलाया करो, इसे बहुत चीजे का नुकसान होता है, उस वक़्त में 5वी कक्षा में था और मैंने अंतिम बार पटाखे जलाए थे और उनके बातों में अमल किया और मैं हर दीपावली में कुछ पटाखे गरीब बच्चो को देता हूं ताकि मैं नही तो कम से कम वह जला ले और इसी में मैं शांति समझता हूं। नन्हे हाथो में जान तो बहुत होती है लेकिन गरीबी किसी के ऊपर सोच कर नही आती है, कुछ न कुछ उन नन्हे हाथों के लिए करना चाहिए जिसे उन्हें उचित शिक्षा, कपड़े, मकान, तथा भोजन मिल सके, अनाथ कोई नही होते है, समय का चक्रव्यूह ही उन्हें अनाथ बना देता है ऐसे में हमे हीनभाव से न देखे प्यार ,शांति तथा मानवता की नजर से देखना चाहिए, और समय समय पर गरीबो का मदत करना चाहिए।

-अमित चन्द्रवंशी "सुपा"
उम्र-18वर्ष 'विद्यार्थी'
रामनगर,कवर्धा,छत्तीसगढ़

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