संस्मरण- गंगरेल यात्रा वृतांत.10/08/2k17
कुर्मी अन्नदाता और भूमिपुत्र परिवार का मिलन समारोह गंगरेल में आयोजित हुआ था ,बहुत ने पहले से अपना नाम दिए थे कि हम आयेंगे हम आयेंगे करके और बहुत लोगो ने तो बिना बताये आये थे लेकिन व्यवस्था बहुत सुंदर था। मैं भी कुछ दिन पहले ही सोचा था जाऊंगा करके लेकिन मैं विकट स्थिति में था और एकदिन कतुलबोर्ड गया था घूमने तब डॉ. खिचरिया चाचा का क्लीनिक देखा तब मैं अंदर गया फिर उनसे बात किया और अपना परिचय दिया और उनसे पूछा की आप ही डॉ. खिचरिया चाचा है क्या? फिर उनसे बात हुआ फिर आयोजन के बारे में भी बात हुआ फिर हम लोगो को अपने घर ले गए थे बाड़ी भी देखे जिसमे अंजीर का पेड़ था जिसमे फल लगे हुए थे फिर घर अंदर गए एक माजा का डिब्बा पीने के लिए दिए जिसमे तोड़ा ही था तो चाचा बोले लड़ना मत पीलो आगे खरीद लेंगे, फिर चाचा ने रूम तक हम लोगो को कार से छोड़े। कुछ दिनो बाद पता चला प्रोग्राम का तिथि तब चाचा ने कहा कि नाम जोड़ना मत सबको आश्चर्य करना है फिर वह दिन 10अगस्त आ गया जिसका सभी को इंतजार था होता भी क्यो नही किसी अपने से मिलने में जो आनंद होता है वह कही और नही होता है, सुबह चाचा फोन किये की बेटा रायपुर नाका तक आ जाना वही हम लोग मिलेंगे फिर मैं वही स्टॉप में बैठा था मेरे बगल में थोड़े देर बाद सूरज बड़ी मम्मी आई और बैठी थी, मुझे पता नही था कि हम साथ जायेंगे क्योकि मैं सूरज बड़ी मम्मी से कभी मिला नही था फिर जब सत्यदेव चाचा नाका के पास आये तब चन्द्रा चाची बुलाई कि बेटा अंदर आ जाओ फिर सत्यदेव चाचा, राकेश चाचा, चन्द्रा चाची, सूरज बड़ी मम्मी और मैं कार में बैठे थे फिर आगे की मंजिल की ओर रुख किये तब सत्यदेव चाचा हँसते है और बोले कि दोनों अगल बगल में बैठे थे फिर भी बात नही किये, हम सभी लोगो को हँसी आ गई। आर्टिग कार में जा रहे थे तभी बीच मे सुरज बड़ी मम्मी ने बड़ा बना के रखी थी सब लोगो मे थोड़ा थोड़ा खाये फिर थोड़े देर में चाची हाथ मे चश्मा पकड़ी थी वो टूट गया फिर गुंडरदेही में चश्मा दूकान गए वहाँ उनका चश्मा नही बना उतने में गाड़ी खड़ी थी तो सूरज बड़ी मम्मी केला खरीद ली फिर हम लोग आगे निकले फिर थोड़े दूर गए थे उतने में दूसरे कार वाले ने हम लोगो को कुछ बोला लेकिन हम लोगो ने ध्यान नही दिया कांच बन्द था सुनाई नही दिया फिर दुबारा फिर बोले तब जान पहचान के होंगे करके बोली सूरज बड़ी मम्मी तब रुके तब उन्होंने जो बताये की पीछे का टायर पंचर हो गया है फिर सभी लोग उतरे फिर देखे कि हम लोगों ने तो थोड़ा दूर पंचर गाड़ी में सफर किये फिर चक्का बदले मैने भी थोड़ा मदत किया राकेश चाचा तो पूरा पसीने में डूब गए थे फिर हम लोग आगे की सफर तय किये और गुंडरदेही से धमतरी रास्ते मे एक अम्मा का होटल है जहाँ का बड़ा बहुत प्रसिद्ध है, वहाँ का बड़ा सत्यदेव चाचा लाये फिर हम सभी ने खाये फिर डॉ. चन्द्रा खिचरिया चाची काजू कतली मिठाई रखी थी खाने के लिए दी। गाड़ी चली अपने रफ्तार में हम लोग आखिरकार गंगरेल पहुच गये फिर रेस्ट हाउस में पता किये कोई नही थे फिर फोन काल किये किसी का फोन नही लग रहा था फिर रेस्ट हाउस के रसोईघर में कुछ लोग काम कर रहे थे, उनसे जाकर सुरज बड़ी मम्मी ने पूछी की ये बैस जी ने ही किराये से लिया है क्या करके? तब पता चला बाकी सभी लोग घूमने गए है फिर हम लोग सभी लोगो को ढूढ़ने लगे इसी दरम्यान सत्यदेव चाचा के साथ हम लोग बांध में रास्ते बने है और डैम के दूसरे ओर गार्डन के ओर जाता है उधर गए पर पता चला वहाँ कोई नही थे फिर हम लोग वापस आये फिर एक फोटोग्राफर से पूछे कि बहुत सारे लोग झुंड में है देखे है क्या फिर वो बताये पास में ही एक मन्दिर है वहाँ गए होंगे लेकिन वहाँ कोई नही थे सिर्फ वहाँ खिल्लु भैया और दीनू चाचा मिले फिर मन्दिर घूमे फिर वहां से वापस आये नया रिसोर्ट बन रहा है उसे बहार से ही देखे फिर वहां से वापस रेस्टहाउस आये फिर कुछ लोग मिले फिर तोड़े देर बाद सभी लोग आते गये घूम फिर के आ रहे थे सभी लोगो ने बहुत मस्ती किये थे। फिर धीरे धीरे सभी लोग मिलते गए छत्रपाल चाचा, भगवती बड़ी मम्मी, ममता बुआ, ज्योति बुआ, गोविंद चाचा, हेमंत भैया, तारेंद्र चाचा और एक नयाब चाचा का नाम ही भूल गया था मनीष चाचा जी फिर गोविंद चाचा ने बहुत लोगो को अंडा पिलाये फिर सभी लोगो ने खाना खाये फिर हाल में बैठे फिर परिचय सत्र चला जिसमे भूमि पुत्र और कुर्मी अन्नदाता दोनों के सदस्य थे लेकिन बहुलता भूमिपुत्र की ज्यादे थे जिन लोगो का विचार अनुकरणीय था सत्यदेव चाचा का लगभग 150रिसर्चर पेपर निकल चुका है और एक कल्याण कॉलेज की प्रोफेसर आंटी जी का लगभग 60 रिसर्चर पेपर और सुधा वर्मा बड़ी मम्मी का 7पुस्तक प्रकाशित हो चुका है और देशबन्धु की मड़ई अंक की सम्पादिका है उनका ख़ुद का कॉलम पेपर में रहता है। बहुत लोग थे जिनका विचार एक मकसद एक दिशा तय करने के लिए था जो मेरे लिए सकारात्मक साबित होता है और मुझे प्रकृति में समय व्यतीत करना अच्छा लगता है इसलिए गंगरेल डैम भी बहुत मनोरम लगा फिर सुरज ढलने लगी शाम होने लगी और सभी लोग धीरे धीरे अपनी अपनी जगह स्थान कि ओर अग्रसर होने लगे।
-अमित चन्द्रवंशी "सुपा"
उम्र-18वर्ष 'विद्यार्थी'
रामनगर,कवर्धा, छत्तीसगढ़
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