पौनी पसारी जाति के महत्व हमर छत्तीसगढ़ी समाज म जतका हवय वतके उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, ओडिसा म हवय। पौनी पसारी मन देखते देखत म बिसरत जावत हवय। राउत, नाउ, धोबी, लोहार, मोची, बईगा, कुम्हार इमन पौनी पसारी म आथे। जब भी कुछु काम होथे त राउत किसानहा या दाऊ मन घर पानी भरते, अउ पहठिया ह गाय-भैसी ल चराय बर लगथे अउ बरदी जोरथे। मरनी हरनी म रउतइन ह पानी कांजी ल भरते अउ बरा बनाये बर असुद्ध रहिथे घर परिवार वाले मन त दार ल पिसथे। राउत ह दीवाली तिहार म गोवर्धन पूजा म ओखर महत्व होथे ओ ह गोवर्धन खुंदवाये के काम करथे अउ बाद म खिचड़ी खावथे अउ मोर पंख लगाथे।राउत मन ल 1-2खाड़ी म लगाथे फेर अब पैसा घोलो देबर पढ़थे। समय बीतत हवय अउ उखर मांग भी बाढ़त जात हवय अब के बेरा म कोनो अपन पीढ़ी दर पीढ़ी कम ल नई करना चाहत हवय सबो झन येति कोति काम करत हवय सब मनखे मन अब अपन आप ल बदले के कोसिस करत हवय अउ सफल होवत हवय। नाऊ गांव म ही देखे बर मिलहि अउ सहर म नाऊ मन बड़का बड़का दुकान खोल डरे हवय, आगू किसान मन ल खोजत खार, बखरी, घर दुआर म खोजत जातिच अउ संवार बनातीच तेन ह बिसरत जात हवय। अउ अब कुछु भी काम धाम होथे त नावईन के काम ल घलो नाऊ ह कर देथे, अउ अपन नेंग ल ले लेथे तभे छोड़थे। पूजा हवन बर लकड़ी,दूबी, फूल पान सबके जुगाड़ नाऊ करय।नाऊ मन दोना पतरी बनातीच तेन ल बर बिहाव, मरनी हरनी, छठी म बउरतीच फेर मसीनी दुनिया म सब बिसर गय। धोबी के काम हरय कपड़ा धोये के फेर उखर अब्बड़ महत्व रहिस हवय, धोबी मरनी हरनी म पूरा कपड़ा जतका ओढ़ना दसना रहिथे तेन ल धोते अउ घर के सुधि करथे। आगू सुहाग देके परम्परा तको धोबी मेर रिहिस हवय तेन ह बन्द होगे।मोची पनही बनाये के काम करथे अउ बाजा नगाड़ा म चमड़ा लगये के काम करथे, मोची ह मर जथे जानवर उखर चमड़ा ल बिन के काम करथे, अउ कोररा, पनही, बेल्ट, पर्स बनाये के काम करथे। कुम्हार ह दिवारी तिहार म दिया अउ मटका देके जावय। अक्ति म चुकलिया अउ मटका जेन म पानी भर के बगीचा, देवालय अउ बर पीपर पेड़ म रखथे, अउ मटका म छेद करके महादेव ऊपर अक्ति के दिन रखथे। पहली माटी के बर्तन म खाना बनय त कुम्हार ह किस्म किस्म के बरतन बनावय तेने म खाना बनय। कुम्हार मेर अनेक प्रकार के कला रहिथे जेन कला ले मूर्ति, घोड़ा गाड़ी लाईक मनके खेले बर बनाथे, पुतरी-पूतरा बनाथे।लोहार ह अपन काम म महारत हासिल करे हवय, ओला सबो प्रकार के अब्बड़ अकन औजार बनाये बर आथे ; कुदरा, कुदरी, रापा, गेती, साबर, अउ खेती करे के किस्म किस्म के औजार बनाथे। लोहार ह अपन काम ल बखूबी करय फेर जब ले टेक्टर हारवेस्टर आए हवय तब ले उखर धंधा चोपट होगे हवय अउ उखर काम धीरे धीरे सिरावत हवय।बईगा के काम ल केवट मन करथे, महामाया, देवालय मन पूजा पाठ के काम इही मन करथे। जोत जवारा जलाये बोये के काम केवट मन करथे।आधुनिक सहर म आज रहत हवन त इंहा विकास जरूरी हवय समय के सात बदलाव जरूरी हवय। जेन मन ल भूल गेन ओ सिर्फ मसिनी दुनिया के सेती होय हवय।आधुनिक जीवन म सबो ल संरक्षित करना मुस्किल हवय तेखर सेती आने वाले पीढ़ी बर म्यूजियम खोले बर पड़ जहि अउ ओमा संरक्षित करे बर लगहि। आज रीत बदलत हवय, विकास बर बदलाव जरूरी हवय अउ तभे हमन विश्व म दूसर देश ले आगे बढ़बो नई त हमन पिछड़त चल देबो। वो बात भी जरूरी हवय की संस्कृति ल संजोके रखे बर पड़ही ओखर बर समाज ले बंध के रहे ल पड़ही।
-अमित चन्द्रवंशी "सुपा"
कवर्धा ,छत्तीसगढ़
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें