मंगलवार, 8 मई 2018

बीते कई साल हो गए

कानों में आवाज आज भी गूंज रहा हैं

वीरान जंगल में बैठे, चारो ओर सिर्फ जंगल ही जंगल है, दूर दूर तक कुछ नही लगभग 10किलोमीटर दूर एक छोटा सा कस्बा था जहाँ बाल काटने जाता और जरूरत का समान खरीदते थे। स्कूल के चार दीवारों से निकले तो हॉस्टल तक का सफर था हॉस्टल भी स्कूल कैंपस में था सुबह उठकर पढ़ने बैठते फिर नास्ता करते फिर स्कूल जाते कक्षा तीसरी की बात है फिर वापस आते 3बजे फिर 3 बजे के आसपास नहाने जाते फिर 4बजे तक वापस आते फिर 4 बजे कुछ काम करते और 8बजे खाना खाकर सो जाते। वह जगह बहुत ही पिछड़ा हुआ है आज भी कोई बदलाव नही हुआ है शायद सड़के बन गई है और नदी में पुल बने है उसमें तो बहुत बड़ा घोटाला हुआ था वह ढह गया था फिर उसे लकड़ी के सहारे खड़ा किये हुए थे। न जाने का जिद्द और घर से दूर न होने की आस हमेशा रोते रोते जाते कभी कभी किसी को काट देता तो कभी किसी के ऊपर पानी डाल देता था। एक और बात थी गर्ल्स हॉस्टल में क्लास 3rd तक रहना होता था फिर बॉयस हॉस्टल। एक लड़की थी उसका मिक्चर खा लिया था बिना पूछे उस तब तक पैसा देते रहा जब तक वार्षिक परीक्षा नही हुआ। उस समय मेरा कोई दोस्त था वो शालानायक थे और वह 12वी में था आज वह एक पत्रकार है लंच के समय डैली में उनके हॉस्टल मतलब बॉयस हॉस्टल जाता था अक्सर वो मुझे कुछ न कुछ खाने को देता था। कोई मेरा साथी था तो वही था जो मेरा हर बात मानते और जब मैं रोता तो मुझे शांत कराते। वो पल मैं कभी नही भूल सकता लेकिन यादे आज भी जहन में जकड़ कर रह गई है। यादे तो बहुत है लेकिन मैं उनको भूल गया था कुछ साल बाद लगभग 10सालो बाद उनसे मुलाकात सोशल साइट्स में हुआ देखा दोबारा कभी नही अब तक।

साल बिता गया और 4th क्लास में आ गया और बॉयस हॉस्टल में रहने लगा।जहन में वही बाते रह गई थी, सुबह उठते 5बजे फिर चर्च जाते फिर आते 7बजे वापस आते और नास्ता करते फिर नास्ता के बाद पढ़ते फिर 9बजे स्कूल जाते फिर लंच में आते और लंच करते फिर स्कूल और 3बजे वापस आते और 1घण्टा काम करते कोई चावल साफ करता तो कोई खेत मे कोई पौधों में पानी डालते तो कोई सब्जियों में। इसी तरह काम होता था जो सब करते थे फिर 4 से 5 खेलते थे फर 5 बजे नहाने जाते नदी। नदी का बहाव बहुत मजा आता था पानी ठंडी ठंडी मस्त रहता था चारों ओर जंगक ही जंगल दूर दूर तक कोई दिखाई नही देता था 6बजे चर्च जाते और आधा से एक घण्टा बाइबिल पढ़ते फिर वापस आकर खाना खाते फिर 9:30PM तक पढ़ाई करते फिर सो जाते लेकिन मुझे जल्दी नींद आती थी बहुत छोटा था मैं उस वक़्त। डिमांड किये जल्दी सोने के लिए मुझे जल्दी सोने को मिल जाता था बाकि लोग पढ़ते थे मैं सोते रहता था। बहुत बड़ा स्टडी रूम था वहाँ पढ़ते  ब्रदर निगरानी करते रहता था। एक वाशरूम था वो 9बजे खुलता और 6बजे बन्द हो जाता था बाहर के वाशरूम बाकि समय उपयोग करना पड़ता था। इस तरह साल बीत गया और 5th क्लास की यादे जो भी है और शायद मेरे जहन में मरते तक रहेगा। वो कड़वाहट जिसे मैं मन में दबा कर अबतक रखा हु स्टडी करता था और बोर्ड क्लास था पता नही मैं कैसे उसे हां बोल दिया 5 रुपये की लालच में अपना ईमान बेच दिया। ये बाते आज भी मुझे झकझोर कर रख देती है पता नही मुझे वो जगह आज भी हमेशा दिखाई देता है, न जाने कब तक मेरे राह में वो एक अजीब मोड़ ने पैर बदल दिए न जाने क्यों मैं उसके साथ पढ़ने बैठ गया। उसे मैं दोबारा जिंदगी में कभी मिला और न मैं मिलना चाहता था गुंडा की तरह बदमाश दिखता था आपने बातों में मुझे समेट लिया उसकी बात आज भी मन में सिकुड़ कर रह गई है आज भी वो बाते कानों में गूंजती है न जाने कब तक उस बात से मुझे चीड़ होगी, एक तूफान स मोड़ जिंदगी ने ली और शायद उस जगह मैं कभी दोबारा नही गया। मेरी याद ताजा न हो कि डर से मैं जिंदगी में उस वो जंगल मे कभी न जाऊ जहाँ से दूर दूर तक सिर्फ जंगल ही जंगल दिखता हो।

-अमित चन्द्रवंशी "सुपा"
उम्र-19वर्ष 'विद्यार्थी'
रामनगर, कवर्धा, छत्तीसगढ़
मो.-8085686829

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