शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

पर्व को लेकर लोगों का दो मत होना

पर्व को लेकर लोगों का दो मत होना.

आजकल लोग पर्व को लेकर काफी उलझन में रहते है यह पर्व हमारा है वह पर्व हमारे परम्परा में नहीं है, वास्तव में पर्व को इंसानो ने अपने सहूलियत के साथ अपनाये व परम्परा में तब्दील हो गई। भारतीय संस्कृति में अभी पर्व नवदुर्गा से शुरुआत होकर तुलसी पूजा में जाकर रुकेगी। 

मैंने कुछ लोगों का विचार पढ़ा कह रहे है हमारे यहाँ का पर्व करवाचौथ नही है, मैं भी मानता हूं हमारा नही है पर जो मना रहे है व अपने दायरे में रह कर मना रहे है ऐसे में हमें आपत्ति नही होनी चाहिए, क्योंकि चांद तो किसी का नही है वो तो सनातन का है अर्थात जब से ब्रम्हांड का उदय हुआ है तब से चाँद हमारे लिए मूल्यवान है, ऐसे में करवाचौथ के पूजन से क्या छत्तीसगढ़ के सकट पर प्रश्न या संकट खड़ा हो जायेगा ?  तो नहीं, दोनों भारतीय संस्कृति का परम्परिक क्षेत्रीय पर्व है, जो भारतीय संस्कृति को प्रकट करती है न कि किसी को नीचा दिखाने का। 

छत्तीसगढ़ में दुर्गा पूजा में जसगीत का अनोखा महत्व है, इसके शुरुआत से आप समझ जाइये कि त्योहारों का मौसम आने वाला है, एक लेखक ने ठंडा का जिक्र किया था कि जैसे ही ठंड की महसूस होती है भारतीय संस्कृति का पर्व साफ नजर आने लगती है। जब कहि डांडिया-गरबा होता है तब कुछ लोगो का कमेंट घिनौनी होती है, अरे आपको कौन अधिकार दिया है किसे गरबा नृत्य करना चाहिए किसे नही, माता की आराधना करने में कोई बुराई नही होना चाहिए, गरबा गुजरात से आया है इसका मतलब यह नही की हम गरबा का अपमान कर दें, गरबा भारतीय संस्कृति का हिस्सा है मना नही सकते तो अपमान भी न करे। 

छत्तीसगढ़ में कार्तिक मास में सुबह-सुबह पूरे कार्तिक महीने में पानी मे डुबकी लगाकर, दीपदान करने का रिवाज है जिसमें दिये सूखे कदु या लौकी के होते है इसे आस्था कहे या भारतीय संस्कृति का हिस्सा यह हमारे लिए अनमोल है। वही सुआ नृत्य की परम्परा है, दिवाली के शुरुआत में सुआ नृत्य करना अर्थात स्त्री शाम में घर-घर जाकर सुआ अर्थात तोता के चारों तरफ नृत्य करती है और सुआ गीत गाकर स्त्री अपने प्रेम को प्रकट करती है। 

वही बिहार में छठ पूजा का महत्व बेहद है तो इसे हमें कोई तकलीफ नही होनी चाहिए, वे लोग हम सब पर अपनी परम्परा नही थोप रहे है, हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए, भारतीय संस्कृति विविधता में एकता का सन्देश देता है, और खण्ड खण्ड से मिलकर बना देश है ऐसे में दूसरों की संस्कृति को बुरा कहने से बचे कोई राय बनाने से बचे आस्था का पर्व प्रेम पूर्वक मनाये, अपनी अपनी संस्कृति है जिसे हम जिंदा रखने का प्रयास कर रहे है, स्वतंत्र भारत मे भारतीय संस्कृति का आदर भाव करिये।।

~अमित चन्द्रवंशी "सुपा"


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